Spiritual short story in hindi
भगवान परशुराम ने कर्ण को श्राप क्यों दिया था? In hindi
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Spiritual stories in hindi |
दोस्तो आपका स्वागत है Spiritual short story in hindi में और मैं हु आपका दोस्त मुंगेरी ढालिया।
दोस्तो मैं आपके लिए नई नई स्टोरीज लाता हु। जिनमे से अपने कई सुनी है और कई नही सुनी।
दोस्तो आज मैं आपके लिए महाभारत के दो ऐसे व्यक्तियों की स्टोरी लेकर आया हु जिनके पराक्रम को हर कोई जानता है।
आज की स्टोरी है अंगराज कर्ण और परशुराम जी की ।
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कर्ण का जन्म
दोस्तो अंगराज कर्ण कुंती माता के पुत्र थे ।इनका जन्म
बहुत ही विपरीत परिस्थितियों में हुआ था।
जब माता कुंती छोटी थी तब उनकी सेवा से प्रसन्न होकर महृषि दुर्वासा ने उनको छः देवताओं के मंत्र दिए और कहा कि तुम जिस भी देवता का मंत्र उच्चारण करोगी तुमको उसी देवता के दर्शन होंगे और उन्ही के समान पुत्र प्राप्त होगा।
उनका मन बहुत चंचल था। उन्होंने सोचा कि देखते है कि इस मंत्र के उच्चारण करने से क्या होता है।
उन्होंने बालपन में सूर्य देव के मंत्र का उच्चारण कर लिया। तभी सूर्य देव प्रकट हुए ।
उनको देखकर देवी कुंती डर गई ।
उन्होंने कहा कि मुझसे अनजाने में ही आपके मन्त्र का उच्चारण हो गया।
लेकिन सूर्य देव ने कहा कि किसी भी देवता के दर्शन व्यर्थ नही जाते तुमको मेरे समान पुत्र की प्राप्ति होगी।
इसप्रकार कर्ण का जन्म हुआ ।
जन्म होते ही कुंती ने लोकलाज के डर से कर्ण को पानी मे छोड़ दिया ।फिर वो एक राधा नामकी स्त्री को प्राप्त हुए और राधा ने उसको अपने पुत्र की तरह ही पाला।
भगवान परशुराम ने कर्ण को श्राप क्यों दिया था?
कर्ण की बचपन से ही अस्त्र शस्त्र में बहुत ही रुचि थी ।जब वो बड़ा हुआ तो उनकी रुचि और भी बढ़ने लगी।वो शस्त्र विद्या सीखने के लिए परशुराम जी के पास गया परशुरामजी ब्राह्मण को ही शिक्षा देते थे।
इसलिए उसने ब्राह्मण का वेश धर परशुरामजी से शिक्षा पाने का अनुरोध किया।परशुरामजी ने कर्ण को शिक्षा देनी प्ररम्भ कर दी और सभी अस्त्र शस्त्र का ज्ञान उसको प्रदान करने लगे।
कर्ण की शिक्षा लगभग पूरी हो गयी थी।
एक दिन कर्ण परशुरामजी की सेवा कर रहा था।परशुरामजी कर्ण के गोदमें सोए थे ।
कि तभी एक विषैले बिच्छू ने कर्ण के पैर पर काटना शुरू कर दिया।
लेकिन गुरु की निद्रा न भंग हो इसलिए वो दर्द सहता रहा उसके पैर में से खून भी निकलने लगा पर कर्ण ने आह तक नही भरी।
कुछ देर बाद जब परशुराम जी की निद्रा खुली तो देखा कि कर्ण के पैर से खून निकल रहा है।
गुरु के उठते ही कर्ण ने उस बिच्छू को मार दिया। परशुरामजी ने जब ये देखा तो उनको पता चल गया कि ये कोई ब्राह्मण नही है और कर्ण से पूछा तो उसने बता दिया कि वो एक सुत पुत्र है।
उसको शस्त्र विद्या सीखनी थी इसलिए उसने झूठ कहा था कि वो एक ब्राह्मण है।
फिर परशुरामजी ने उसको श्राप दिया कि उसने जो भी विद्या परशुरामजी से सीखी है।वो सब समय आने पर उसको जब उस विद्या की जरूरत होगी तब वो विद्या भूल जाएगा और जब अर्जुन से उसका अंतिम युद्ध था तब वो अपनी सारी विद्या भूल गया और अर्जुन ने उसका वध किया।