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शैलपुत्री माता की कथा in hindi navratri 2020 kab hai spiritual stories short

Posted on 29th September 20195th November 2020 by Mungeri dhaliya
नवरात्रि 2020 शैलपुत्री माता की कथा in hindi

Table of Contents

  • नवरात्रि navratri 2020 kab hai शैलपुत्री माता की कथा
  • नवरात्रि में 9 दिन मे दुर्गा के किस रूप की पूजा की जाती है।
    • नवरात्रि के प्रथम दिवस कौनसी देवी पूजी जाती है?
  • नवरात्रि के दूसरे दिन किस देवी की पूजा की जाती है
  • माता ब्रह्मचारिणी की कथा
  • आपको पता होगा कि हिमालय पर्वत कि पुत्री होने के कारण इनको शैलपुत्री कहा जाता है और इन्होंने नारद जी के कहे अनुसार भगवांन शिव को अपना पति बनाने के लिए इन्होंने बहुत कठिन तप किया।
  • Mata chandraghanta ki katha

नवरात्रि navratri 2020 kab hai शैलपुत्री माता की कथा

माता शैलपुत्री navratri 2019
माता शैलपुत्री navratri 2020
हेलो दोस्तो आपका स्वागत है मेरे पोस्ट में और मैं आज आपके लिये लाया शैलपुत्री माता की कथा।
दोस्तो आपको मेरे ब्लॉग में बहुत प्रकार की कहानियां और जानकारी प्रदान करता हु।

दोस्तो  नवरात्रि प्रारम्भ होने वाली है और हिन्दू धर्म मे इन 9 दिनों का बहुत महत्व है।इन 9 दिनों में माता दुर्गा के 9 रूपो की पूजा की जाती है।

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इन 9 दिनों में अलग अलग रंग के कपड़े पहनने का भी चलन है। नवरात्रि में लोग 9 दिन तक डांडिया भी खेलते है और कई जगहों पर गरबा भी खेला जाता है।

नवरात्रि में 9 दिन मे दुर्गा के किस रूप की पूजा की जाती है।

  • नवरात्रि के पहले दिवस माता शैलपुत्री की पूजा की जाती है।
  • नवरात्रि के दूसरे दिन ब्रह्म चारिणी माता की पूजा की जाती है।
  • नवरात्रि के तीसरे दिन माता चन्द्रघण्टा की पूजा होती है।
  • नवरात्रि के चौथे दिन माता  कूष्मांडा जाती है
  • नवरात्रि के पांचवे दिन माता स्कंदमाता की पूजा की जाती है।
  • नवरात्रि के छठे दिन माता कात्यायनी की पूजा की जाती है।
  • नवरात्रि के सातवें दिन माता कालरात्रि की पूजा की जाती है।
  • नवरात्रि के आठवें दिन माता महागौरी की पूजा की जाती है।
  • नवरात्रि के नवें दिन माता सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है।

नवरात्रि के प्रथम दिवस कौनसी देवी पूजी जाती है?

नवरात्रि के प्रथम दिवस में माता शैलपुत्री की पूजा की जाती है।माता शैलपुत्री का नाम हिमालय पर्वत की पुत्री होने के कारण पड़ा है।
इनके दाएं हाथ मे त्रिशूल और बाएं हाथ मे कमल है।
ये माता शैलपुत्री नवरात्रि के प्रथम दिवस में पूजी जाती है और इस दिन माता की पूजा घी का भोग लगाकर की जाती है।
इस दिन घी का भोग लगाने से माता प्रसन्न होती है और उसके सभी रोगों को दूर करके अपने भक्त को निरोगी करती है।
अपने पिछले जन्म में ये माता शैलपुत्री राजा दक्ष प्रजापति के घर उनकी पुत्री के रूप में प्रगट हुई थी।
तब इनका नाम देवी सती था और इनका विवाह कैलाश पति शिव शंकर से हुआ था।
एक बार राजा दक्ष प्रजापति ने बहुत बड़ा यज्ञ किया था और उस यज्ञ में उन्होंने सभी देवताओं को आमंत्रित किया।
पर भगवान शिव को उसमे आमंत्रित नही किया।
माता सती को जब पता चला कि उनके पिता यज्ञ कर रहे है तो उन्होंने यज्ञ में जाने का आग्रह किया ।
शिवजी ने कहा कि उन्होंने हमको इस यज्ञ में नही बुलाया है।
इसलिए हमारा जाना ठीक नही होगा। पर सती नही मानी और अपने पिता के यज्ञ में चली गयी।
वहा पर प्रजापति दक्ष ने माता सती के पति शिवजी के लिए बहुत अपमान भरे शब्द कहे ।शिवजी का अपमान माता सती से सहन नही हुआ और उन्होंने वही पर आत्म दाह करके अपने शरीर का त्याग कर दिया।
जब ये बात भगवान शिव के पास पहुंची तो उन्होंने अपने गणों को भेजकर उस यज्ञ को विध्वंस कर दिया।
अगले जन्म में माता सती ने ही हिमालय की पुत्री शैलपुत्री के रूप में जन्म लिया।

ये थी माता शैलपुत्री की कथा।

नवरात्रि के दूसरे दिन किस देवी की पूजा की जाती है

नवरात्रि के दूसरे दिन माता ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है।
माता ब्रह्मचारिणी को पीला रंग प्रिय है। इसलिए माता ब्रह्मचारिणी को पीले वस्त्र अर्पण किये जाते हैं और खुद को भी पिले वस्त्र धारण करने चाहिए।
बहुत तप करने के कारण इनको तपचारिणी भी कहा जाता है।

माता ब्रह्मचारिणी की कथा

आपको पता होगा कि हिमालय पर्वत कि पुत्री होने के कारण इनको शैलपुत्री कहा जाता है और इन्होंने नारद जी के कहे अनुसार भगवांन शिव को अपना पति बनाने के लिए इन्होंने बहुत कठिन तप किया।

माता ब्रह्मचारिणी वर्षों तक निराहार रही।
वो बहुत ही सुकोमल थी फिर भी उन्होंने कठोर तप किया।
उनकी कठोर तपस्या देखकर भगवान शिव ने उनको दर्शन दिया और कहा कि मुझे पति रूप में पाने के लिए जो तुमने तपस्या की है वो आप ही कर सकती है और कोई नही कर सकता।
इतनी कठोर तपस्या के कारण भगवान शिव उनको पति रूप में मिले।
जो भी दूसरे दिन माता ब्रह्मचारिणी की पूजा करता है।
उनको सर्वसिद्धि प्राप्त होती है।ये थी माता ब्रह्मचारिणी की कथा।

Mata chandraghanta ki katha

कल नवरात्रि का तीसरा दी है और नवरात्रि के तीसरे दी माता चन्द्रघण्टा की पूजा होती है Mata chandraghanta ki katha इस प्रकार है।
एक बार महिषासुर नाम का राक्षस वरदान पाकर बहुत ही शक्ति शाली हो गया था।उसको वरदान था कि सिर्फ वो नारी के हाथों ही मरेगा ।
अन्यथा और कोई उसको नही मार सकता।अपनी शक्ति से उसने तीनो लोको को जीत लिया।
सभी देवता त्रिदेवो के पास गए। भगवान विष्णु ने एक उपाय निकाल लिया और सभी देवताओं की शक्ति से एक अद्भुत नारी प्रकट हुई ।
उनके दस हाथ थे और वे बहुत ही तेजोमयी थी।सभी देवताओं ने उनको अनेक प्रकार के अस्त्र शस्त्र प्रदान किये ।उन माता को देवराज इंद्र ने अपना वज्र और एक चन्द्राकर घण्टा प्रदान किया ।माता ने उसको अपने मस्तक पर धारण किया ।इसी कारण उनका नाम चन्द्रघण्टा पड़ा।
सभी शक्तियों से सम्पन माता महिषासुर का वध करने निकल पड़ी ।

जब महिषासुर को ये पता चला कि कोई दिव्य नारी जिसके दस हाथ है और उसके सभी हाथ अस्त्र शस्त्रो से सुसज्जित है और वो शेर पर सवार है।

तो उसको पाने के लिए उसने अपने कई सैनिको को भेजा लेकिन माता ने उसके सभी सैनिको का वध कर दिया।

जब महिषासुर खुद आया तो माता ने उसका भी वध कर दिया।सभी देवो ने आकाश से पुष्पो की वर्षा की।

ये थी माता चन्द्रघण्टा की कथा।

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